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रांची/डेस्क: ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न सिर्फ आस्था का महापर्व है बल्कि इसमें निभाई जाने वाली परंपराएं भी उतनी ही अद्भुत और दिव्य होती हैं. आज से शुरू हुई रथ यात्रा 2025 में एक बार फिर वो दृश्य देखने को मिलेगा जब पुरी के गजपति महाराज खुद सोने की झाड़ू लेकर रथों के आगे रास्ता बुहारते नजर आएंगे. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान के रास्ते की सफाई सोने की झाड़ू से ही क्यों की जाती है? इस परंपरा का नाम है- छेरा पहरा और इसके पीछे छिपा है गहरा आध्यात्मिक रहस्य.
क्या है 'छेरा पहरा' रस्म का महत्व?
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान जब भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते है तो उनके रथ की राह को सबसे पहले सोने की झाड़ू से साफ किया जाता हैं. यह रस्म पुरी के गजपति राजघराने द्वारा निभाई जाती हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, सोना केवल धातु नहीं बल्कि एक पवित्र ऊर्जा का स्रोत हैं. सोने की झाड़ू से भगवान के मार्ग को शुद्ध करना यह दर्शाता है कि रजा स्वयं को भी प्रभु के चरणों का सेवक मानता हैं. यह परंपरा यह भी संदेश देती है कि ईश्वर के सामने सब बराबर है, फिर चाहे वो राजा हो या रंक.
वैदिक मंत्रों और झाड़ू से शुद्ध होता है मार्ग
छेरा पहरा के दौरान केवल झाड़ू लगाना ही नहीं होता बल्कि वैदिक मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता हैं. यह मार्ग को न केवल बाहरी रूप से साफ करता है बल्कि आध्यात्मिक शुद्धता भी प्रदान करता हैं.
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
मान्यता है कि एक बार देवी सुभद्रा ने पुरी नगरी घूमने की इच्छा जताई थी. तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बैठकर नगर दर्शन कराने निकले थे. उसी की याद में हर साल यह रथ यात्रा निकाली जाती हैं. यात्रा के दौरान तीनों भगवान गुंडिचा मंदिर ताज जाते है, जिसे देवी सुभद्रा का मौसीघर माना जाता हैं. वहां वे सैट दिन तक ठहरते है और फिर वापस आते हैं.
लाखों श्रद्धालुओं को मिलता है पुण्य
रथ यात्रा में शामिल होकर रथ को खींचने का अवसर मिलना भगवान का आशीर्वाद माना जाता हैं. मान्यता है कि इससे जीवन के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती हैं.