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रांची/डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से सफलतापूर्वक जुड़ने का महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया है. एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन के तहत यह डॉकिंग प्रक्रिया अपेक्षित समय से 20 मिनट पहले पूरी हुई. इसके बाद, यान की सुरक्षा और प्रणाली की जांच की जाएगी, जिसमें हवा के रिसाव और दबाव की स्थिरता की पुष्टि की जाएगी. इसके बाद, क्रू को ISS में प्रवेश करने की अनुमति मिलेगी.
28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा
स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल अब 418 किमी ऊंचाई पर 28,000 किमी/घंटा की गति से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है. लॉन्च के लगभग 26 घंटे बाद, यान अब अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है. इस दौरान, यान ने कई कक्षीय मैन्यूवर्स किए हैं ताकि यह ISS की कक्षा के साथ पूरी तरह से अलाइन हो सके.
डॉकिंग प्रक्रिया: एक स्वचालित लेकिन सटीक कदम
स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल की डॉकिंग एक स्वचालित (autonomous) प्रक्रिया है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला और कमांडर पेगी व्हिटसन द्वारा मॉनिटर किया जा रहा है.
डॉकिंग प्रक्रिया
1. रेंडेजवू (Rendezvous): लॉन्च के 90 सेकंड बाद, ड्रैगन कैप्सूल अपनी गति और दिशा को समायोजित करता है. यान 400 मीटर नीचे और 7 किमी पीछे से शुरू होता है और धीरे-धीरे 200 मीटर की दूरी तक पहुंचता है. इस दौरान, स्पेसएक्स और नासा के ग्राउंड कंट्रोलर यान के सिस्टम की जांच करते हैं.
2. नजदीक पहुंचना (Close Approach): 200 मीटर की दूरी पर, ड्रैगन ISS के साथ सीधा संचार स्थापित करता है. यह चरण 6 घंटे तक सुरक्षित रूप से चलता है, जिससे जोखिम को न्यूनतम किया जाता है.
3. अंतिम स्टेप (Final Approach): 20 मीटर की दूरी पर, ड्रैगन कैप्सूल लेजर सेंसर, कैमरे और GPS का उपयोग करके ISS के हार्मनी मॉड्यूल के डॉकिंग पोर्ट से सटीक संरेखण करता है. यह गति बेहद धीमी होती है, केवल कुछ सेंटीमीटर प्रति सेकंड, जिससे नियंत्रित डॉकिंग सुनिश्चित होती है.
डॉकिंग प्रक्रिया के अंतिम चरणों में, दो प्रमुख चरण होते हैं:
1. सॉफ्ट कैप्चर: इस चरण में, मैग्नेटिक ग्रिपर ड्रैगन कैप्सूल को डॉकिंग पोर्ट की ओर खींचते हैं.
2. हार्ड कैप्चर: इस चरण में, मैकेनिकल लैच और हुक यान को पूरी तरह से सुरक्षित करते हैं, जिससे एक दबाव-रोधी सील बनती है और डॉकिंग पूरी होती है.
इसके बाद, यान के सिस्टम की 1-2 घंटे तक जांच की जाएगी, जिसमें हवा के रिसाव और दबाव की स्थिरता की पुष्टि की जाएगी. जांच पूरी होने के बाद, अंतरिक्ष यात्री ISS में प्रवेश करेंगे और मिशन के अगले चरण की तैयारी करेंगे. यह डॉकिंग न केवल भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के लिए एक ऐतिहासिक पल है, बल्कि अंतरिक्ष यात्रा की तकनीकी विकास और सुरक्षा के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण सफलता है. इस मिशन के माध्यम से, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की भूमिका और भी मजबूत हुई है.