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आदिवासी के पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार देने के हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देगा आदिवासी महासभा

आदिवासी के पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार देने के हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देगा आदिवासी महासभा
न्यूज11 भारत 




रांची: झारखंड हाईकोर्ट के द्वारा आदिवासी बेटियों को सम्पत्ति पर अधिकार दिए जाने के फैसला को आदिवासी महासभा कोर्ट में चुनौती देगा. यह निर्णय आज आदिवासी संगठनों की बैठक में लिया गया. आज इस मुद्दे को लेकर विभिन्न आदिवासी सामाजिक संगठनों की बैठक समाजसेवी सरन उरांव की अध्यक्षता में नगड़ा टोली में हुई. 

 

आदिवासी समाज में कस्टमरी लॉ के अनुसार पैतृक संपत्ति में नही मिलता है अधिकार

 

बैठक में पूर्व मंत्री सह आदिवासी महासभा के संयोजक देवकुमार धान ने कहा कि आदिवासी समाज के कस्टमरी लॉ के अनुसार आदिवासी  महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता है. चूंकि आदिवासी समुदाय में जमीन को जीविका का एक साधन माना गया है, खरीद बिक्री करने का साधन नहीं. आदिवासी समुदाय में बेटी की शादी हो जाने पर वह स्वत: अपने पति कि सम्पति की स्वामी बन जाती है. इसलिए आदिवासी समाज में बेटियों को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार नहीं दिया जाता है. कुछ विशेष परिस्थितियों में यदि महिला अविवाहित रहती है या विधवा हो जाती है और वह अपने ससुराल में नहीं रहकर अपने भाई के घर आ जाती है. वैसे स्थिति में उस महिला को जीवनभर जीवनयापन करने हेतु सम्पत्ति पर बराबर का अधिकार दिया जाता है. परन्तु उस जमीन को वह बेच नहीं सकती है वह उस जमीन को जीवन भर उपयोग कर सकती है. धान ने कहा कि आदिवासी संस्कृति और परम्परा पूरे मानव जाति के लिए अनुकरणीय है, पूरे विश्व में आदिवासी संस्कृति ही है जो आज तक सामूहिकता और सहभागिता के सिद्धांत पर चलता है, आदिवासी समुदाय में महिलाओं का बहुत ही ऊंचा स्थान है. वह जीवन के प्रत्येक पड़ाव में पुरुष के साथ कदम से कदम मिलकर चलती है.  ऐसे सुसंस्कृत समाज में बाहरी नियम और कानून थोपना गलत है, आदिवासी समाज में दहेज़ प्रथा नहीं है. लड़की शादी के लिए वर को चुनती है. ऐसा महान परम्परा किसी अन्य समाज में देखने को नहीं मिलेगा. 

 

कोर्ट का दूरगामी परिणाम होगा, इसे डबल बेंच में दी जाएगी चुनौती

 

धान ने कहा कि हाईकोर्ट के इस फैसले का आदिवासी समाज में बहुत दूरगामी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे. धान ने बतलाया कि झारखण्ड हाईकोर्ट के इस फैसले का कानूनी विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया जा रहा है. अध्ययन के पश्चात् इस विषय पर उचित कदम उठाया जाएगा. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के परम्परा को बचाने के लिए जरुरत पड़ी तो हाईकोर्ट के डबल बेंच या सुप्रिम कोर्ट में इस निर्णय को चुनौती दी जाएगी.  

 

एक मई को होगी वृहद बैठक

 

इसके लिए 1 मई  को सरना भवन में संविधान विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई है. बैठक में मुख्य रूप से राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के महासचिव  प्रो. प्रवीण उरांव, आदिवासी महासभा के महासचिव बुधवा उरांव, आदिवासी लोहरा समाज के अध्यक्ष अभय भुटकुंवर, झारखण्ड क्षेत्रीय पड़हा समिति हटिया के अध्यक्ष अजित उरांव, बिनोद उरांव, कजरू उरांव, चारो खलखो, झरिया उरांव, शंकर उरांव, राजेंद्र उरांव समेत अन्य उपस्थित थे.

 

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