शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन (हुसैन शासक हैं, हुसैन सम्राट भी), दीन अस्त हुसैन, दीन पनाह अस्त हुसैन (हुसैन दीन भी हैं और उसे बचाने वाले भी), सर दाद दाद दस्त दर दस्ते यजीद (हुसैन ने अपना सर भले दे दिया, पर अपना हाथ यजीद को नहीं दिया). देश-दुनिया के मशहूर सूफी-संत गरीबनवाज ख्वाजा मोइनउद्दीन चिश्ती अजमेरी की उक्त पंक्तियां कर्बला के वाक्ये और नवासए रसूल इमाम हुसैन (रजि.) की इस्लाम में क्या हैसियत है यह बताने के लिए काफी है. यही वजह है कि कहा जाता है “कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद”...
इस्लाम में मुहर्रम महीने की खास अहमियत है. इसी महीने में दस मुहर्रम (10 मुर्हरम को यौमे-ए-आशूरा भी कहा जाता है) को इमाम हुसैन और उनके समर्थकों ने मैदान-ए-कर्बला में एक यादगार जंग लड़े, शहीद हुए. दुनिया भर के मुसलमान अपने-अपने अंदाज में इस वाक्या को याद करते हैं और इमाम हुसैन को अपना हदिया अकीदत पेश करते हैं. यह जंग हक और जालिम के बीच थी.
कर्बला-इमामबाड़ा में नियाज-फातिहा करा रहे लोग
इस्लामिक कैलेंडर के साल का पहला महीना मुहर्रम की दसवीं तारीख पर लोग सुबह से ही नियाज-फातिहा में जुटे हैं. वैश्विक कोरोना महामारी के कारण रांची समेत राज्यभर में 20 अगस्त को मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला जा रहा है. न ही रांची के कर्बला चौक स्थित कर्बला में भव्य मेला का आयोजन हुआ. मगर कर्बला के आसपास दुकानें सजी हुई हैं. नारियल, शिरनी और खिलौनों की दुकान पर लोग बच्चों को लेकर पहुंच रहे हैं. खरीदारी जारी है, कर्बला में लोग नियाज-फातिहा करा रहे हैं. इसके अलावा अपने-अपने मोहल्लों के इमामबाड़ों में नियाज-फातिहा करा रहे हैं.
मुहल्लों में लंगरखानी- शर्बत बांटे जा रहे
मुहर्रम को लेकर विभिन्न चौक चौराहों और मोहल्लों में लंगर खानी का आयोजन किया गया. इस संबंध में एदार-ए-शरिया के नाजिम-ए-आला ने अपील की है कि चौक-चौराहों और मोहल्लों में सबिल (आने-जाने वाले लोगों के लिए पानी-शरबत की व्यवस्था) करें. नवासए रसूल इमाम हुसैन (रजि.) और कर्बला के तमाम शहीदों की याद में जहां तक हो सके गरीबों की मदद करें, उन्हें खाना खिलाएं.
अधिकतर लोग रोजा रखे
मुहर्रम की नौंवी-दसवीं तारीख को विशेष कर रोजा भी रखा जाता है. यह अनिवार्य नहीं. मगर अधिकतर घरों में इन दो दिनों रोजा रखने वाले रोजेदार मौजूद हैं. रमजान की तरह ही सूरज ढलने के बाद इफ्तार करेंगे. इसको लेकर इफ्तार की व्यवस्था भी लगभग सभी घरों में की जा रही है.
5-10 लोग ही मुहर्रम का निशान-फूल कर्बला में करेंगे दफन
शिया समुदाय की ओर से दसवीं मुहर्रम को निकाला जाने वाला मातमी जुलूस का इस बार आयोजन नहीं होगा. कोविड के कारण लगातार दूसरे साल मातमी जुलूस नहीं निकाला जा रहा है. वहीं, मस्जिद ए जाफरिया में होने वाला मजलिस भी इस बार भी ऑनलाइन किया गया. इस संबंध में मस्जिद ए जाफरिया के इमाम व खतीब मौलाना हाजी सैयद तहजीबुल हसन रिजवी ने बताया कि कोविड को देखते हुए सिर्फ 5-10 लोग मुहर्रम का निशान और फूल लेजाकर कर्बला में दफन करेंगे.