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रांची/डेस्क: प्लेन एक्सीडेंट जब भी होते है, तो अक्सर उसकी हालत इतनी बत्तर हो जाती है कि पूरा मलबा सिर्फ राख और मेटल का ढेर बनकर रह जाता हैं. लेकिन हैरानी तब होती है जब इतने बड़े हादसे के बावजूद ब्लैक बॉक्स हमेशा बिलकुल ही सेफ मिलता हैं. आखिर ऐसा कैसे हो जाता हैं? आईए बताते है बेहद आसन शब्दों में कि ऐसा कैसे होता हैं?
क्या है ब्लैक बॉक्स
ब्लैक बॉक्स असल में दो डिवाइस होते हैं CVR (Cockpit Voice Recorder) पायलट की आवाज, बातचीत, कॉकपिट की साउंड रिकॉर्ड करता है. दूसरा है FDR (Flight Data Recorder) विमान का टेक्निकल देटा, स्पीड, ऊंचाई, इंजन की जानकारी सेव करता हैं. इन दोनों को मिलाकर ही ब्लैक बॉक्स कहा जाता हैं. प्लेन के पिछले हिस्से में इसे लगाया जाता है क्योंकि क्रैश के वक्त उस जगह पर काफी कम नुकसान होता हैं.
क्यों ब्लैक बॉक्स को नहीं होता है नुकसान?
ब्लैक बॉक्स को एक खास टेक्नीक से बनाया जाता है ताकि ये आग, पानी, झटकों और क्रैश को झेल सके.
- मटेरियल मजबूत होता है : ब्लैक बॉक्स का बाहरी हिस्सा स्टेनलेस स्टील या टाइटेनियम से बना होता हैं, जो बहुत ही पावरफुल मेटल होता हैं.
- तेज आग से भी बाख जाता है: इसे 1100°C तक की आग में भी करीब 1 घंटे तक बचाए रखने के लिए डिजाइन किया जाता है. यानि कि अगर प्लेन जल कर राख भी हो जाए तो भी उसका देटा सेव रहता हैं.
-पानी और भरी दबाव से भी सेव: अगर प्लेन समुंदर में गिर जाए तो भी ब्लैक बॉक्स 20,000 फिट गहराई तक के पानी और दबाव को भी सह सकता हैं.
-अंदर की लेयर देती है सिक्यूरिटी: ब्लैक बॉक्स के अंदर कई लेयर होते है इसमें शॉक एब्जॉर्बर, थर्मल प्रोटेक्शन और इंसुलेशन, जो अंदर के डेटा को किसी भी टक्कर या टेंपरेचर से बचाता हैं.
ब्लैक बॉक्स हादसे के बाद कैसे मिलता हैं?
ब्लैक बॉक्स में एक अंडरवॉटर लोकेटर बिकन भी लगा होता है, जो पानी में गिरने के बावजूद भी सिग्नल भेजते रहता है और यह सिग्नल करीब 30 दिनों तक भेजाता है ताकि सर्च टीम उसे ढूंढ़ सकते हैं.
क्यों जरुरी होता है ब्लैक बॉक्स?
ब्लैक बॉक्स किसी भी विमान हादसे की सबसे बड़ी गवाही होती है. ब्लैक बॉक्स के डेटा से यह पता चलता है कि पायलट ने हादसे से पूर्व क्या कहा, कौन सी ऐसी टेक्नीकल खराबी आई, आखिर ऐसा क्या हुआ कुछ ही सेकंड में. इससे सर्च एजेंसियां सच्चाई तक पहुंचती है ताकि फ्यूचर में हादसों को रोका जा सके.