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सर्द मौसम, बर्फीली सरहद और जांबाज, जानिए कैसे जीते हैं सैनिक लद्दाख में

सैनिकों को 14,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर जीवित रहना एक कठिन चुनौती
सर्द मौसम, बर्फीली सरहद और जांबाज, जानिए कैसे जीते हैं सैनिक लद्दाख में


देश के मैदानी इलाके पर भयंकर सर्दी से ठिठुर रहे हैं. लेकिन वतन के रखवाले सरहद पर मुस्तैद हैं. लद्दाख का तापमान जब माइनस 40 डिग्री से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है और बेहद ही सर्द हवाएं चलती हैं तब भी वीर सपूतों का हौंसला रत्तीभर भी नहीं डिग पाता.


पूर्वी लद्दाख का पूरा इलाका यानि लेह से कारू, चांगला पास दर्रा, दुरबुक, गलवान, बुर्तसे, डेपसांग प्लेन, डीबीओ, गोगरा, हॉट स्प्रिंग, फिंगर एरिया, थाकूंग, चुशुल, रेजांगला, रेचिन-ला सभी इलाके 14 हजार फीट से 18 हजार फीट पर है. लद्दाख की ऊंची बर्फीली चोटियों पर जहां चीनी भी तैनात नहीं रहते, वहां भारतीय सेना की सबसे बड़ी दुश्मन जमा देने वाली ठंड होगी. एलएसी पर तैनात जवानों के लिए 14,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर जीवित रहना एक कठिन चुनौती है.


भारत एलएसी पर चीन के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार है, ऐसे में यहां तैनात जवानों को भिन्न- भिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.


भारतीय सैनिक बीते तीन दशक से ऐसे खराब मौसम में रहने का हुनर जानते हैं. जवानों को सियाचिन ग्लेशियर, LOC और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में रहने का अनुभव है. अब वे इसे लद्दाख में इस्तेमाल करेंगे.


फिर भी, इन दो क्षेत्रों में सर्दियों का अनुभव काफी अलग है. एलओसी भारी बर्फबारी और हिमस्खलन की आशंका वाला इलाका है. जबकि एलएसी दुनिया का सबसे ज्यादा ठंड वाला रेगिस्तान है. यहां बर्फबारी तो कम होती है, लेकिन ठंड बेहद जमा देने वाली पड़ती है.


अक्टूबर से अप्रैल के बीच में सर्दियों के दौरान यहां तापमान अमूमन माइनस 20 डिग्री सेल्सियस के करीब रहता है. लेकिन कई बार ये माइनस 60 डिग्री सेल्सियस तक भी गिर जाता है.


बर्फीली हवाओं की वजह से फ्रोस्टबाइट यानी बॉडी के टिशु के जम जाने का खतरा बढ़ जाता है. इस घातक कंडीशन में इंसान अपनी हाथ और पैरों की उंगलियां के साथ शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है.


फ्राेस्टबाइट यानी बॉडी के टिशु का जम जाना सबसे ज्यादा चिंता का कारण है, बाद में ये अंग को काटने का कारण भी बन जाता है. अगर सैनिक कुछ सेकंड के लिए भी खुले हाथों से राइफल का ट्रिगर या बंदूक की नली को छूता है तो इसका परिणाम बेहद गंभीर हो सकता है. सैनिक की स्किन बंदूक के मेटल से चिपक सकती है.


इसके अलावा, ऊंची चोटियों पर होने से सैनिकों को सेरेब्रल एडिमा की शिकायत भी हो सकती है, इस कंडीशन में अधिक ऊंचाई तक यात्रा करने के कारण फ्ल्यूड के साथ दिमाग में सूजन आ जाती है.


इसके अलावा उन्हें हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी एडिमा भी हो सकता है. इस कंडीशन में रक्त वाहिकाओं से फ्ल्यूड फेफड़ों के टिशु में रिसाव का कारण बनता है. इसके अलावा वे हाइपोथर्मिया का अनुभव भी कर सकते हैं. जहां शरीर अपनी क्षमता से ज्यादा गर्मी पैदा करता है. इनमें से सभी कंडिशन बेहद घातक हैं.


पारंपरिक अभियानों के उलट, ऊंचाई पर जंग करने के साथ खराब मौसम से भी जूझना होता है. जवानों की तैनाती से पहले उनको हाई एल्टीट्यूड के लिए अभ्यस्त होना पड़ता है.


इस वजह से ऐसे इलाकों में सैनिकों को तेजी जुटाना मुश्किल है. चूंकि ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होती है तो सैनिकों के भार और हथियार ले जाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.


इसके अलावा, कम तापमान पर कई सैन्य सामान बेकार हो जाते हैं. वह जाम पड़ जाते हैं और बंदूक की नालों में दरार आने लगती है. सैनिकों को लगातार अपने हथियारों को ठीक रखने के लिए लुब्रीकेंट का इस्तेमाल करते रहना होगा.


सैनिकों को मौसम की स्थिति के कारण उन्हें विशेष आहार पर रहना पड़ता है.


ऊंचाई वाले इलाकों में काम करने वाले सैनिकों को एनोरेक्सिया या भूख की शिकायत रहती है. ऐसे में उनके राशन में ज्यादा कैलोरी वाले फूड के साथ चॉकलेट, फलों और सब्जियों की ज़रूरत पड़ती है.


भारतीय सेना और एयरफोर्स के लिए इतनी ऊंचाई पर आपूर्ति करना एक दुस्वप्न जैसा है. क्योंकि पूर्वी लद्दाख में तैनात 35 हजार अतिरिक्त सैनिकों के लिए स्पेशल कपड़े, खाना और रहने की जरूरत पड़ेगी.


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