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जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा जल संकट का खतरा- पद्मश्री अशोक भगत

जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा जल संकट का खतरा- पद्मश्री अशोक भगत
न्यूज11 भारत

रांची/डेस्कः पद्मश्री और बिशुनपुर विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने जलवायु परिवर्तन से जल संकट में खतरा की आशंका जताई है उन्होंने कहा है कि आज के आधुनिक युग में जलवायु परिवर्तन मुख्य समस्या में से एक है जिसका बड़ा असर पर्यावरण के साथ इंसानों और जीव जंतु के साथ प्राकृतिक संसाधनों व अर्थव्यवस्था पर भी दिखने को मिल रहा है. नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन की वजह से वैश्विक आय में 19 प्रतिशत की कमी आएगी. इसका खासा असर भारत पर अधिक पड़ेगा जहां 22 फीसदी की कमी का अनुमान लगाया गया है जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा जल का बताया गया है जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में जल संसाधन एक प्रमुख चिंता का विषय है इसके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है. क्योंकि स्वच्छ जल मानव जीवन में आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए भी अति आवश्यक है लेकिन इसमें खतरा उत्पन्न होने लगा है. साथ ही वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस जैसी कई गैसों की बढ़ोत्तरी हो रही है जिसके कराण ओजोन लेयर बुरी तरीके से प्रभावित हो रहा है जिससे पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है तापमान बढ़ने के कारण बारिश होने के पैटर्न में भी बदलाव आया है बात करें समुद्र तल के जल स्तर की तो यह लगातार बढ़ती हुई नजर आ रही है. और पृथ्वी पर इन तमाम परिवर्तनों की वजह से ही बाढ़ और सूखे जैसी परिस्थियां दिखाई दे रही हैं 

 

अशोक भगत के बताया है कि कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दुनियाभर में अगल-अलग प्रकार से दिखाई देने लगा है. जिसके जिसकी वजह से जलाशयों के आकार में संकुचन, छोटे छोटे जल स्त्रोतो का सूखना, हिमनदों में बर्फ का पिघलना, भूमिगत जल स्तर में गिरावट, नदियों में पानी के स्तर में गिरावट इत्यादि प्रमुख है. उन्होंने कहा कि अगर इसी प्रकार से जलवायु परिवर्तन के असर में बढ़ोत्तरी होता रहा तो आने वाले वक्त में हमें भारी जल संकट से जूझना पड़ेगा. दरअसल, शहरी क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन करीब 135 लीटर और  महानगर क्षेत्र में करीब 200 लीटर पानी की जरूरत होती है लेकिन हमारा प्रबंधन इस समय देश के बड़े क्षेत्र की आबादी को सिर्फ 55 लीटर स्वच्छ जल उपलब्ध कराने में भी असमर्थ है उन्होंने बताया कि एक गैर सरकारी संगठन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, विश्व स्तर पर करीब 2.3 अरब लोग फिलहाल जल की कमी वाले देशों में निवास करते हैं. करीब 2 अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पा रहा है वहीं भारत जैसे देश में केंद्रीय भूजल बोर्ड के द्वारा किए गए सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि कुल क्षेत्र के 16 फीसदी भाग में पानी की वार्षिक पुनर्भरण मात्रा से वार्षिक निकासी अधिक है इससे यह स्पष्ट है कि जल का दोहन से भूजल स्तर में लगातार कमी आ रही है भूमि के भीतर जल के भंडारण से अधिक दोहन किया जा रहा है हालांकि यह सौभाग्य की बात है कि भारत में करीब 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल बारिश से मिलती है इसमें से करीब 2000 क्यूबिक मीटर जल झील, नदी, जलाशय और हिमनदों में उपलब्ध हैं लेकिन इसके बावजूद पानी की मात्रा का वितरण देशभर में एक समान नहीं है. जिसकी वजह से देश के कुछ भाग में सूखे तो कहीं बाढ़ जैसी स्थितियां उत्पन्न होती रहती है. और इसी बारिश का पानी का सबसे बड़ी मात्रा बंगाल की खाड़ी में समा जाती है. जिसका हमलोग विदोहन नहीं कर पा रहे हैं.

 


 

जलवायु परिवर्तन की वजह से जल चक्र में भी बड़े बदलाव दिखाई दे रहे हैं इस वजह से 1971 से 2020 के बीच करीब 1 से 1.7 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा में कमी आई है. इससे 25 से 30 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हमें कम मिल रहा है इससे हम जैसे 600 मिलियन लोगों को प्रत्येक दिन 135 लीटर वार्षिक घरेलू पानी उपलब्ध कराने में कमजोर पड़ रहा हैं भूजल स्तर में उत्तरोत्तर गिरावट की वजह से कृषि जल की 60 फीसदी से अधिक मांग भी भूजल के द्वारा ही पूरे किए जा रहे हैं. जिसमें से 9.1 मिलियन उथले नलकूप, 2.6 मिलियन गहरे नलकूप और 8.8 मिलियन कुआं से जल का प्रयोग किया जा रहा है. फिलहाल इसी से काम चलाया जा रहा है. जलवायु परिवर्तन जैसे विषम परिस्थितियों में जल संसाधनों को संरक्षित करना और उसे बनाए रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है इसके लिए सर्वप्रथम लोगों में जलवायु परिवर्तन के कारणों व इससे निपटने के लिए जागरूकता लाने की आवश्यकता है इसी से आने वाले बेहतर कल की शुरूआत की जा सकती है इसके लिए जल बचत तकनीक, जल संरक्षण, भूमिगत जल पुनः भरण, जलस्रोत का संरक्षण, वृक्षारोपण, जल पुनः उपयोग, जल उपयोग तकनीक का विकास इत्यादि पर ध्यान केंद्रित करना होगा. इसके द्वारा ही जल संसाधनों का निरंतर व सुनिश्चित उपयोग क्षमता में बढ़ोत्तरी की जा सकती है. इसके अलावे कृषि के क्षेत्र में हमें सूक्ष्म सिंचाई के बड़े पैमाने पर उपयोग करना होगा. देश में बड़े पैमाने पर सूक्ष्म सिंचाई के द्वारा 144.99 लाख हेक्टेयर रकबा (2021-22) रो आच्छादित किया गया है इसे और ज्यादा बढ़ाने की जरुरत है.

 

जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन संरक्षण के साथ जल स्त्रोतों के संवर्धन को भी अभियान का हिस्सा बनाना भी वर्तमान समय की सबसे प्रमुख जरूरत है जल भंडारण क्षमता में वृद्धि करना, वर्षा जल का संचयन, ग्रीन हाउस गैसों को कम करना, बोराबांध, मेड़बंदी आदि को बढ़ावा देने की आवश्यकता को हमें आज का युग-धर्म बनाना चाहिए. प्राकृतिक जल प्रबंधन और जल संरक्षण के साथ जल स्त्रोतों के संवर्द्धन की स्पष्ट नीति का अभाव भी वर्तमान समय में समस्याओं के प्रमुख कारक हैं. 
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