आशीष शास्त्री/न्यूज़11 भारत
सिमडेगा/डेस्क: नव प्रभात नव लय के साथ हिंदू नववर्ष यानी नया संवत्सर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपद तिथि आज 30 मार्च से हिंदू नववर्ष शुरू हो रहा हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन ब्रह्मा जी ने धरती की संरचना की थी. आज से कलश स्थापना के साथ बासंतिक नवरात्र की भी शुरुआत होगी. शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र की शुरूआत हो रही हैं. 30 मार्च से चैत्र नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं, जिसका समापन 6 अप्रैल को होगा. ये चैत्र शुक्ल पक्ष की वासंतिक नवरात्र हैं. चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती हैं. इस नवरात्र में तमाम तरह की शक्तियां पाई जा सकती हैं. इस बार चैत्र नवरात्र पर घटस्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त रहेंगे. आज सुबह 06.13 बजे से सुबह 10:22 बजे तक घटस्थापना का मुहूर्त हैं. फिर आप दोपहर 12:01 बजे से दोपहर 12.50 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना कर सकेंगे। 05 मार्च को अष्टमी और 06 को रामनवमी के साथ चैत्र नवरात्र का समापन होगा. सिमडेगा में देवी गुड़ी सलडेगा और शिव मंदिर ठाकुर टोली में चैत्र नवरात्र में माता रानी का भव्य दरबार सजेगा और माता का पूजन अनुष्ठान होता रहेगा. जिसकी तैयारियां चल रही हैं.
चैत्र नवरात्र पर भक्तों पर माता रानी की कृपा बरसती रहेगी. नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों यानी विशेष रात्रि का बोध होता है. इस समय शक्ति के नवरूपों की उपासना की जाती है. 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है. ऋषियों ने नवरात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया. रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं. आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है. हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे. वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं. उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है. इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है. मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है. यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है.
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में 1 साल की 4 संधियां हैं. उनमें चैत्र व अश्विन माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के 2 मुख्य नवरात्र पड़ते हैं. इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक आशंका होती है. ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है. अमावस्या की रात से अष्टमी तक या प्रतिपदा से नवमी की दोपहर तक व्रत-नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है. यहां रात गिनते हैं इसलिए नवरात्र यानी नौ रातों का समूह कहा जाता है. रूपक द्वारा हमारे शरीर को 9 मुख्य द्वारों वाला कहा गया है. इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है. इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारु रूप से क्रियाशील रखने के लिए 9 द्वारों की शुद्धि का पर्व 9 दिन मनाया जाता है. इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए 9 दिन 9 दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं. शरीर को सुचारु रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किंतु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर 6 माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है. सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है. स्वच्छ मन-मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है.

