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रांची/डेस्क: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर सवार अंतरिक्ष यात्री हर दिन एक असामान्य और अविश्वसनीय अनुभव से गुजरते हैं. उनके लिए सूर्योदय और सूर्यास्त, जो पृथ्वी पर केवल एक या दो बार होते हैं, वहाँ हर 45 मिनट में होते हैं. दिन और रात का चक्र पूरी तरह से उलट जाता है. नासा की प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, जो वर्तमान में आईएसएस पर हैं, इस अद्भुत और असामान्य दृश्य से बखूबी परिचित हैं.
सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्वितीय अनुभव
जब सुनीता विलियम्स को 2013 में गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया था, तब उन्होंने अंतरिक्ष में अपने अनुभवों के बारे में बताया. वे कहती हैं, "स्पेस में जाना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए बहुत मेहनत और तैयारी करनी पड़ती है. मुझे वहां 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखने का मौका मिलता था!"
यहां, "16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त" का मतलब है कि आईएसएस अपने तीव्र गति से हर 90 मिनट में एक पूरा चक्कर लगाता है, और इस दौरान, अंतरिक्ष यात्री हर 45 मिनट में सूर्योदय या सूर्यास्त का अनुभव करते हैं. यानी, पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए, वह दिन और रात के चक्र को लगातार बदलते हुए महसूस करते हैं.
क्यों होते हैं इतने सूर्योदय और सूर्यास्त?
आईएसएस पृथ्वी से करीब 418 किलोमीटर ऊपर और लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है. इसके चलते, अंतरिक्ष यात्री हर 90 मिनट में एक पूरा चक्कर पूरा करते हैं. जब वे पृथ्वी के अंधेरे पक्ष से प्रकाश की ओर बढ़ते हैं, तो सूर्योदय होता है, और जैसे ही वे फिर से अंधेरे पक्ष में लौटते हैं, सूर्यास्त होता है. इस प्रक्रिया में, उन्हें एक दिन में 16 बार सूर्योदय और 16 बार सूर्यास्त देखने का अनुभव मिलता है, जो कि पृथ्वी पर किसी के लिए कभी संभव नहीं हो सकता.
अंतरिक्ष में दिन-रात का चक्र
पृथ्वी पर एक दिन में लगभग 12 घंटे का उजाला और 12 घंटे की रात होती है, लेकिन आईएसएस पर यह चक्र पूरी तरह से अलग है. यहां के अंतरिक्ष यात्री लगभग हर 45 मिनट में दिन और रात का अनुभव करते हैं. यह निरंतर चक्रीय परिवर्तन एक तरह से उन्हें समय के पार एक अद्वितीय एहसास देता है. इस अंतरिक्ष जीवन में, जहां पारंपरिक दिन-रात का पैटर्न गायब हो जाता है, अंतरिक्ष यात्री अपने कार्यों और दिनचर्या को समन्वित सार्वभौमिक समय (UTC) पर आधारित रखते हैं. इस समय का पालन करना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है, ताकि वे आईएसएस पर रहते हुए अपने कार्यों में पूरी तरह से सुसंगत और सक्रिय रह सकें.
विलियम्स की यात्रा और आईएसएस पर उनका समय
हाल ही में, सुनीता विलियम्स और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विल्मोर को आईएसएस पर अतिरिक्त समय बिताने का अवसर मिला. दरअसल, बोइंग स्टारलाइनर की वापसी यात्रा में देरी के कारण उनकी कक्षा में मौजूदगी 2025 तक बढ़ा दी गई. इस समय का उपयोग वे महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्यों में योगदान देने और अंतरिक्ष के अद्वितीय अनुभवों को तलाशने में कर रहे हैं. इसके अलावा, दोनों अंतरिक्ष यात्री उन चमत्कारी क्षणों का भी आनंद ले रहे हैं, जब वे 24 घंटों के भीतर कई सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं.
आईएसएस पर समय कैसे काम करता है?
आईएसएस पर पारंपरिक दिन-रात का चक्र लागू नहीं होता. अंतरिक्ष यात्री 90 मिनट में पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाते हैं, जिसके कारण उनका समय काफी तेज़ी से बदलता है. यहां, उन्हें प्राकृतिक दिन के उजाले की कमी खलती है, और वे अपने कार्यक्रम को समन्वित सार्वभौमिक समय (UTC) के अनुसार चलाते हैं. इस कठोर दिनचर्या में काम, भोजन, आराम और अन्य गतिविधियाँ इतनी सटीक होती हैं कि अंतरिक्ष यात्री मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हुए अपनी सभी ज़िम्मेदारियाँ पूरी कर सकें.
सुनीता विलियम्स का भारतीय जुड़ाव
सुनीता विलियम्स केवल अंतरिक्ष यात्री नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति से भी गहरे जुड़ी हुई हैं. 2006 में, जब वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर थीं, तो उन्होंने अपने साथ भगवद गीता की एक प्रति लेकर गईं. इसके अलावा, 2012 में ओम का प्रतीक और उपनिषदों की एक प्रति भी साथ ले गईं. इसके अलावा, वे अपने पैतृक गांव झूलासन और साबरमती आश्रम का दौरा करने के लिए गुजरात भी आईं.
अंतरिक्ष में सूर्योदय और सूर्यास्त के इस चमत्कारी अनुभव को शब्दों में बांधना कठिन है. 16 बार सूर्योदय और 16 बार सूर्यास्त देखना, हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करना—ये सब किसी के लिए भी एक अद्वितीय अनुभव हो सकता है. और जब यह अनुभव अंतरिक्ष यात्रियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ-साथ अनुसंधान में योगदान करने का अवसर देता है, तो यह साबित होता है कि अंतरिक्ष में जीवन वास्तव में एक अविस्मरणीय यात्रा है.