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रांची/डेस्क: भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) ने पशुओं की टूटी हड्डियों को जोड़ने के लिए एक अनोखा और क्रांतिकारी समाधान तैयार किया हैं. अब मल्टीपल फ्रैक्चर यानी कई टुकड़ों में टूटी हड्डियों को जोड़ने के लिए न तो प्लेट की जरूरत पड़ेगी, न रॉड और न ही स्क्रू लगाने होंगे. इसके लिए एक खास किस्म की दवा ‘बोन ग्लू’ तैयार की गई हैं.
कैसे करता है असर?
आईवीआरआई की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रेखा पाठक के निर्देशन में वर्ष 2012 में इस शोध की शुरुआत हुई थी. यह दवा भैंस के टिश्यू से तैयार की गई है, जिसमें हड्डी के विकास में सहायक तत्व मौजूद होते हैं. इसकी मदद से 10 किलोग्राम तक के छोटे पशुओं की टूटी हड्डियों को जोड़ा गया है और प्रयोग सफल रहा हैं. इस बोन ग्लू को ऑपरेशन के दौरान हड्डियों के टूटे हिस्सों पर लगाया गया. यह गाढ़े तरल रूप में लगाया जाता है और थोड़ी देर बाद यह सख्त होकर एक मजबूत परत में बदल जाता है, जो सभी टुकड़ों को स्थिर कर देती हैं. उपचार के बाद केवल बाह्य प्लास्टर चढ़ाया गया और 21 से 25 दिनों में हड्डी पूरी तरह जुड़ गई.
शोध में सबसे पहले खरगोश, गिनी पिग और छोटे कुत्तों पर इसका परीक्षण किया गया, जिसमें सभी की हड्डियां सफलतापूर्वक जुड़ गई. पशु फिर से सामान्य रूप से चलने लगे. इसके बाद जम्मू और जबलपुर के वेटरिनरी कॉलेजों में भी यह तकनीक अपनाई गई, जहां इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए.
शोध के दौरान आईवीआरआई द्वारा पहले बोन ग्राफ्ट तैयार किया गया, फिर कोलेजन जैल बनाया गया जो नए टिश्यू के विकास में मदद करता है और घाव जल्दी भरता हैं. इन्हीं सामग्रियों को मिलाकर ‘बोन ग्लू’ तैयार की गई, जिसमें ग्रोथ फैक्टर और विशेष पॉलीमर भी शामिल हैं. शोध छात्र देवेंद्र मांगेर ने बताया कि 10 किलो से कम वजन के पशुओं में इसके 100 प्रतिशत सफल परिणाम आए हैं. हालांकि, बड़े पशुओं में हड्डी के जटिल फ्रैक्चर में प्लेट और स्क्रू की थोड़ी जरूरत अभी भी पड़ती है लेकिन ग्लू ने वहां भी सहायक की भूमिका निभाई.
डॉ. रेखा पाठक के अनुसार, बोन ग्लू से जुड़े पहले परिणाम सिर्फ 15 दिनों में एक्स-रे में दिखने लगे थे. यह जैविक ग्लू बायोलॉजिकल ओस्टियोसिंथेसिस की आधुनिक पद्धति में एक बड़ी सफलता हैं. खास बात यह है कि इस बोन ग्लू को केवल पशुओं तक सीमित नहीं रखा गया हैं. वैज्ञानिक अब इसे इंसानों की हड्डियों में भी उपयोग करने की दिशा में काम कर रहे हैं. दो मेडिकल कॉलेजों के ऑर्थोपेडिक सर्जन इस पर शोध कर रहे हैं और इसके अंतिम परिणाम का इंतजार हैं. आईवीआरआई जल्द ही इस बोन ग्लू का पेटेंट कराएगा, जिसके बाद देशभर के पशु चिकित्सक इसका इस्तेमाल कर सकेंगे. यह तकनीक न केवल इलाज की लागत को कम करेगी बल्कि पशुओं के लिए दर्द रहित और तेज़ उपचार का विकल्प भी बनेगी.