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रांची/डेस्क: दुनियाभर में मंदिरों के देश के नाम से प्रसिद्ध भारत में खास वास्तुकला, मान्यता और पूजा के नियमों में अलग ही मायने होते हैं. देश के हर कोने में अपनी खास बनावट और शिल्पकला के वजह से कई अलग-अलग देवी-देवताओं के कई मंदिर प्रख्यात हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसका इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर की खासियत है कि यहां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भगवान की भक्ति और धार्मिक झंडे के साथ राष्ट्रीय झंडा तिरंगा को भी फहराया जाता है. आइए जानते हैं इस खास मंदिर के बारे में.
अंग्रेज देते थे फ्रीडम फाइटर्स को फांसी
झारखंड की राजधानी रांची के बीचों-बीच रातू रोड में स्थित पहाड़ी मंदिर की कहानी बेहद ही रोचक है. देश की आजादी से पहले ये मंदिर अंग्रेजों के कब्जें में था. ब्रिटिश आर्मी यहां स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दिया करते थे. भारत की आजादी के संग्राम में ये मंदिर का खास इतिहास रहा है. रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर रातू रोड में स्थित भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर को पहाड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है. प्राचीन समय में ये मंदिर टिरीबुरू के नाम से जाना जाता था. जब भारत में ब्रिटिश राज आया तो ये मंदिर का नाम 'फांसी गरी' में बदल गया. इस जगह पर अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों (फ्रीडम फाइटर्स) को फांसी दिया जाता था.
मंदिर में होता है झंडोतोलन
1947 में देश के आजाद होने के बाद रांची में पहली बार तिरंगा पहाड़ी मंदिर में ही फहराया गया था. रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र दास ने यहां पहली दफा झंडोतोलन किया था. इसके बाद से ही हर स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) व गणतंत्रता दिवस (Republic Day) पर यहां राष्ट्रीय झंडे तिरंगे को फहराया जाता है. पहाड़ी मंदिर देश का पहला ऐसा मंदिर है, जहां तिरंगा फहराया जाता है. पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर भी लगा हुआ है जिसपर 14 और 15 अगस्त, 1947 की आधी रात को देश की आजादी का संदेश लिखा हुआ है. समुद्र तल से 2140 फीट और जमीन से 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 468 सीढियां चढ़नी पड़ती है. ये झारखंड की राजधानी रांची का मुख्य आकर्षण का केंद्र है. मंदिर की चोटी से पूरे रांची शहर का मनमोहक दृश्य नजर आता है. शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां शिव भक्तों का हुजूम लगा रहता है.