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अंतिम सांसें गिन रहा है पुरातात्विक शिल्पकला पातकुम संग्रहालय चांडिल

अंतिम सांसें गिन रहा है पुरातात्विक शिल्पकला पातकुम संग्रहालय चांडिल

बसंत कुमार साहू/न्यूज़11 भारत


सरायकेला/डेस्क: विवेक सिंह बाबु पातकुम संग्राहालय उपाध्यक्ष ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में चार प्रखंड क्षेत्र आता हैं, चारों प्रखण्ड मिलाकर लगभग 60% विस्थापित परिवार है. सिस्टम फेल वाली भ्रष्ट सरकार ने छल कर वास्तुभिटा ज़मीन जायदात आदि को लेकर विस्थापित दंश झेलने में विवश तथा परिवार उजाड़ने का काम किया है. विस्थापितों के लिए छलवा पुनर्वास नीति बनाया गया.

 

छलवा पुनर्वास नीति में अंकित निम्नलिखित हैं-

(1) जमीन जायदात आदि का समुचित मुआवजा भुगतान के लिए व्यवस्था.

( 2) विस्थापित कार्ड बनाकर अतिशीघ्र अनुदान राशि भुगतान करना.

( 3) सरकारी नियोजन या   रोजगार का मुल साधन उपलब्ध कराना.

(4)  पुनर्वास स्थल पर 25 डी० बासगीत जमीन के साथ मूलभूत पुनर्वासित समुचित व्यवस्था.

(5)  विस्थापित सम्मानित पैकेज उपलब्ध कराना.

(6)  प्राचीन व स्थानीय पारंपरिक संस्कृतीक धरोहर कलाकृति सम्पदाऔ को सुरक्षा संरक्षण देना सरकार का प्रथम दायित्व जिम्मेदारी नीति में उल्लेख कर सर्वेक्षण पंजी बनाया गया था. जो खोखला साबित हुआ.

 

सरकार ने विस्थापितों के उपर 43 वर्ष तक केवल छल और ठगने का ही काम किया हैं. 116गांव को विस्थापित किया गया है और केवल 42गांव को ही अभी तक विकास पुस्तिका अनुदान राशि भुगतान कर रहा है, बाकी 74गांव को ठंडा बस्ता में रख दिया है और प्रति वर्ष बरसात में डुमा रहा है. विधायक एवं सांसद केवल विस्थापित परिवार का वोट बैंक बना हुआ है.

 

इन विस्थापित क्षेत्र से कई प्रकार के प्राचीन शिलाखंड, शिलालेख, पुरातात्विक पत्थर की मूर्तियां एवं  वेश कीमती अन्यान्य संस्कृतीक धरोहर कलाकृतियां को एकत्रित व संग्रहित कर चांडिल शीशमहल में प्रस्तावित पातकुम संग्रहालय स्थापना कर चांडिल डैम से विस्थापित गांव से प्राचीन मूर्ति आदि रखा गया हैं तथा अभी भी विस्थापित क्षेत्र से कई प्रकार के पुरातात्विक मूर्तियां संग्रहित होना बाकी रह गया है. 11 वी शताब्दी के पूर्व वाली श्रीति व इतिहासिक धरोहर अब भी ( 360 मौजा ख्याति सोनार पातकुम स्टेट ) ईचागढ़ क्षेत्र में देखने को मिल सकते हैं.

 

तत्कालीन बिहार प्रदेश में ईचागढ़ एक बहुचर्चित क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. इसलिए झारखंड अलग होने के पहले 360 मौजा सोनार पातकुम ख्याति सोनार पातकुम स्टेट बनाने का चर्चा जोरों पर चला था . जो आज झारखंड स्टेट बन गया. इन मनगढ़त झारखंड में कई सारे कहानी और रहस्य छुपा हुआ हैं. अगर देखा जाय तो झारखंड को लूट खंड परिभाषित करना कोई गुनाह नहीं होगा. यह भ्रष्ट लूट विपरित दलाली कार्य छोड़कर अच्छा काम होने देना नहीं चाहता हैं जिसमें नेताओं का अच्छा संरक्षण मिलती हैं और इसी को अपना काम समझ बैठते हैं. इन मूल्यवान क्षेत्र से पंचकवि में से एक कवि रामकृष्ट गांगुली से लेकर कई सारे लेख लिखने वाले, कहानी व कविता लिखने वाले महान कवि ही नहीं वल्कि महान कलाकार भी इस क्षेत्र में हैं. केवल निखारने का जरूरत हैं. हमारे कालांतर इतिहास व पूर्वजों का श्रीति को याद रखने का उद्देश्य से इन सब पुरातात्विक मूर्तियां, सिलाखण्ड एवं अन्यान्य आदिम जनजातिय सांस्कृतिक धरोहर कलाकृतियां सामग्रियों को संग्रहित किया गया हैं. इन संग्रहित संरक्षण व्यवस्था में सन 1992 को स्वर्णरेखा परियोजना के तत्कालीन प्रशासक श्रीमान देवदास छोटराय, पुरातत्व विभाग के तत्कालीन सहायक निर्देशक श्री राम शेखर सिंह, पुरातात्विक सोध कार्य अनुभवी व्यक्ति चित्रकार श्री पूर्णेन्दु महतो, आसार छोऊ नृत्य निर्देशक उस्ताद श्री रमेश सिंह मुंडा, आसार सोसाइटी के महासचिव सह स्वयं सेवक मुख्य कार्यकर्ता शिल्पकार श्री विवेक सिंह बाबू , उत्कृष्ट शिल्प  मूर्तिकार श्री गुण्ठा लायक तथा स्थानीय मुद्धिजीवी पत्रकार बसंत कुमार साहू, पत्रकार सुभाष प्रमानिक, पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा,कलाप्रेमी समाज सेवी के मार्गदर्शन योगदान व व्यक्तिगत रुचि रख कर उन सब के देख रेख में संग्रहित व संरक्षित हो पाया है.

 

यह पत्थर की पुरातात्विक मूर्तियां, सिलाखंड व प्राचीन अन्यान्य दुर्लभ सांस्कृतिक धरोहर खासकर ईचागढ़ विस्थापित क्षेत्र से एकत्रित कर प्रस्तावित पातकुम संग्रहालय बनाया गया हैं. चांडिल डैम समीपवर्ती स्थान पर शीशमहल, गोल घर डैम निर्माण के समय यानी 1978 को मॉडल टावर गोलघर  बना कर चांडिल डैम का रूप रेखा तैयार किया गया था. डैम बनने के बाद 1992 में सुवर्णरेखा परियोजना के तत्कालीन प्रशासक के आदेश व वयक्तिगत चेष्टा के कारण खाली पड़े शीशमहल को पातकुम संग्रहालय बनाकर डूब जाने के पहले डूबी क्षेत्र से इस समस्त पत्थर की पुरातात्विक मूर्तियां, प्राचीन शिलालेख एवं अन्य सांस्कृतिक धरोहर वस्तु सामग्री संपदाओं को  संग्रहित व संरक्षित कर रखा गया हैं. वर्तमान समय में विकास, संरक्षण, संपोषण व सही देख रेख के अभाव में अविस्मरणीय स्मृति के प्रतीक चिन्ह के रूप में साकार किए गए यह पुरातात्विक संपदाओं से परिपूर्ण शीशमहल चांडिल में बने "पातकुम संग्रहालय " दिन प्रतिदिन गरिमा क्षीण हो रही हैं. बद से बद्तर होता जा रहा हैं. जिसका जिम्मेवार लूटनीति, भ्रष्टनीति, जातनिति से ग्रसित इन सरकार का नाकामी को दर्शाता हैं. विस्थापितों का काम धरातल में न होकर केवल कागज़ात में ही पेश कर उपलब्धि गिनाया जा रहा है.
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