राजदेव/न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: कोडरमा के बाद रामगढ़ में स्वच्छ भारत मिशन, ग्रामीण में जम कर लूट के आरोप लगे.120 करोड़ रूपये की लागत से शौचालय का निर्माण होना था, इसमें 70 करोड़ रूपये के घोटाले के आरोप लगे.बिना शौचालय बने ही करोड़ों की राशि निकाली गई, जिले में प्रचार-प्रसार के लिए बिना एजेंसी के चयन के मनमाने दर लोगों को खास लोगों को काम दिया गया, जिनके पास जीएसटी नंबर तक नहीं था.कार्यपालक अभियंता राजेश रंजन और जिला समन्वयक पर अपने व्यक्तिगत खाते में राशि हस्तांतरित करवाने के भी आरोप भी लगे.
कागज पर 3 हजार शौचालय, 3.06 करोड़ की निकासी-
संभवतः राज्य में अब तक संज्ञान में आया ये पहला मामला है जहां शहरी क्षत्रे में बड़े पैमाने पर घपलेबाजी की गई.रामगढ़ कैंटोनमेंट बोर्ड में 10 समितियों ने कागज पर ही 3 हजार शौचालय बना डाले.सभी शौचालयों को 8 वार्डों में बना हुआ दिखाया गया.इनमें से 3 समितियां ऐसी रहीं जिन्होंने 1.09 करोड़ रूपये की हेराफेरी की.यही नहीं सभी शौचालयों का फर्जी उपयोगिता प्रमण पत्र बनवाया गया जिसे विभाग को सौंपा गया.उन दिनों तात्कालीन कार्यपालक अभियंता ने फर्जी समितियों पर कार्रवाई की बात कही थी.हालांकि सूत्र बताते हैं कि तीनों समितियों की बागडोर जिला समन्वयक रामकुमार के हाथों में रही.
प्रचार-प्रसार में घोर अनियमितता-
जिले में प्रचार-प्रसार के लिए 9 महीने में 41 लाख रूपये दिये गये.लेकिन दो ही एजेंसियों को प्रचार-प्रसार का काम सौंपा गया.इनमें से एक का नाम बालाजी वेल्फेयर सोसाइटी था और दूसरे का नाम मानव विकास संस्था.ये मामला केवल एक वित्तीय वर्ष 2019-20 का है.ऑडिट रिपोर्ट में भी ये बात साफ हो गई कि गलत तरीके से संस्थाओं को काम दिया गया.न तो किसी एजेंसी को वर्क ऑर्डर दिया गया, न किसी का जीएसटी काटा गया, न टेंडर या कोटशन किया गया और न ही दर ही निर्धारित की गई.इसके साथ ये दो संस्थायें ऐसी थीं जिनके पास जीएसटी नंबर भी नहीं थे.41 लाख के इस प्रचार-प्रसार में जिला समन्वयक रामकुमार के व्यक्तिगत खाते में 19 लाख रूपये की राशि जमा की गई.इसके आगे राजेश रंजन का भी नाम जोड़ा गया.
दिशा की बैठक में हंगामा-
दिशा की बैठक में तात्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री और हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा ने 70 करोड़ के घोटाले पर जांच की मांग की.जिले के 326 गांवों में 120 करोड़ की लागत से 1 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था.जिस पर 70 करोड़ की घपले बाजी के आरोप लगे.संपन्न लोगों का बना हुआ शौचालय दिखा कर 62 लाख रूपये निकाले गये.लपंगा में 96 लाख की लागत से 803 शौचालय बनने थे लेकिन 240 बने ही नहीं और 280 अधूरे रहे.दिशा की बैठक में सांसद ने सभी मामलों पर जांच की मांग की.इस मामले में डीडीसी को 7 दिनों के अंदर जांच की रिपोर्ट देने का आदेश दिया गया था.
13 करोड़ के नो-वन लेफ्ट शौचालय कहां हैं?
सरकार ने 2019 के अंत में ‘नो वन लेफ्ट’ शौचालय बनाने की घोषणा की.इसके तहत जिले में 13 करोड़ की राशि दी गई.इस राशि से 11 हजार शौचालयों का निर्माण किया जाना था.लेकिन 6 हजार शौचालय बने ही नहीं, 5 हजार शौचालय अधूरे रहे जबकि सारी राशि निकाल ली गई.यही नहीं उपयोगिता प्रमाण पत्र भी जमा करवाये गये जिसमें लाभुकों के फर्जी हस्ताक्षर होने की भी बात सामने आई.आज भी रामगढ़ के लोग 11 हजार शौचालय कहां बने, ये समझ नहीं पा रहे हैं.
विरोध करने वाले मुखिया की हत्या-
घपलेबाजी का विरोध करने वाले भुरकुंडा के लपंगा के मुखिया महेश बेदिया की हत्या कर दी गई.इसका आरोप साहिल अंसारी पर लगा जिसने 35 शौचालय बनाने के लिए 4.20 लाख रूपये मुखिया से लिये थे.लेकिन साहिल ने बिना शौचालय बनाये ही सारी राशि निकाल ली.परिजनों ने आरोप लगाया कि पैसे मांगने पर ही साहिल ने उनकी हत्या की.
व्यक्तिगत खाते में राशि का हस्तांतरण-
प्रचार-प्रसार जिन दो एजेंसियों को दिया गया उसका पूरा बैंक डिटेल न्यूज 11 भारत के पास मौजूद है.दिये गये डिटेल के अनुसार जिला समन्वयक रामकुमार के खाते में करोड़ों की राशि का हस्तांतरण किया गया.इस डिटेल में कार्यपालक अभियंता राजेश रंजन का नाम भी सामने आया.
पावरफुल रहे जिला समन्वयक-
इन बड़े घोटालों के बीच जिला समन्वयक और कार्यपालक अभियंतजा की भूमिका सदैव संदिग्ध रही.तात्कालीन निदेशक अबू इमरान ने घोटाले की खबर मिलते ही जिला समन्वयक रामकुमार को हटाने के निर्देश दिये.उन्हें जिला समन्वयक के पद से तो हटा दिया गया लेकिन पतरातू प्रखंड में काम लिया जाने लगा.इस प्रखंड में सबसे अधिक घाटाले हुए.जिन 3 महिला ग्रुप को शौचालय बनाने का जिम्मा दिया गया था उसकी बागडोर इन्हीं के हाथों में थी.आज कार्यपालक अभियंता राजेश रंजन रांची पूर्वी में पदस्थापित हैं.कई जांच के मामले आज भी क्लीयर नहीं हो पाये हैं.
सारे घोटाले और गतिविधि एक साथ कई सवाल छोड़ रहे हैं.इतने घोटालों के बाद भी आखिर रामकुमार को पतरातू में किसने रखा? जिसने रखा क्या उस पर कोई कार्रवाई हुई? रामकुमार पर राशि गबन के बावजूद प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं हुई? यदि प्राथमिकी दर्ज हुई तो आरोपी अब तक बाहर कैसे हैं? आखिर इन्हें कौन बचा रहा है और कौन प्रश्रय दे रहा है?