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बोकारो/डेस्क: बोकारो के एफसीआई साइडिंग में एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है. एक ऐसी मालगाड़ी का चावल एफसीआई के गोडाउन में दर्ज पाया गया, जो वहां कभी पहुंची ही नहीं. रेलवे से मिली जानकारी और एफसीआई की रीजनल कमिटी की जांच रिपोर्ट के अनुसार, वैगन नंबर NC13023, जिसे 36 वैगनों के साथ 30 अक्टूबर 2023 को बोकारो PEG साइडिंग के लिए भेजा गया था, वास्तव में वहां कभी नहीं पहुंचा. इसके बावजूद उस वैगन का चावल एफसीआई गोदाम में दर्ज कर लिया गया.
यह खुलासा तब हुआ जब 19 मार्च 2024 को रेलवे की ओर से एफसीआई को सूचित किया गया कि वैगन NC13023 अब तक गायब है. इसके बाद हुई जांच में सामने आया कि गोदाम में इस वैगन से संबंधित माल पहले ही दर्ज किया जा चुका था. इस गड़बड़ी ने एफसीआई के रिकॉर्डिंग सिस्टम और मैनेजमेंट पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
कैसे हुआ खुलासा?
30 अक्टूबर 2023 को एफसीआई डीओ धनबाद की ओर से 36 वैगनों में चावल भेजने का आदेश जारी किया गया था. 41 वैगनों वाली मालगाड़ी (जिसमें 36 वैगन चावल से भरे थे और 5 खाली) छत्तीसगढ़ के सुंडा स्टेशन से रवाना हुई और 31 अक्टूबर को बोकारो पहुंची. मगर दस्तावेजों के अनुसार, जिन 36 वैगनों को रिसीव किया गया, उनमें NC13023 शामिल नहीं था. इसके बावजूद गोदाम रिकॉर्ड में इस वैगन का चावल दर्ज है.
जांच में क्या सामने आया?
एफसीआई की रीजनल कमिटी की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं:
- वैगन NC13023 30 अक्टूबर को बोकारो पहुंचा ही नहीं था.
- फिर भी इस वैगन से संबंधित 1319 बोरे चावल गोदाम में दर्ज कर दिए गए, जिसकी कीमत करीब 20 लाख रुपये है.
- 19 मार्च 2024 को जब यह वैगन असल में सामने आया, उसमें वही विवरण (वैगन नंबर, बोरी की संख्या, कमोडिटी, लोडिंग सेंटर) थे जो अक्टूबर में दर्ज किए गए थे – जो सामान्य परिस्थितियों में लगभग असंभव है.
एफसीआई अधिकारी क्या कह रहे हैं?
एफसीआई के डिविजनल मैनेजर चक्रपाणि सिद्धार्थ ने बताया कि उन्हें इस हेरफेर की जानकारी छह महीने तक नहीं थी. “रेलवे की सूचना के बाद हमने उन्हें पत्र लिखकर सूचित किया कि वैगन NC13023 को 30 अक्टूबर को ही रिसीव कर लिया गया था. अगर ऐसा नहीं है, तो गोदाम में आया चावल आखिर किसका था?” उन्होंने दावा किया कि एफसीआई को इससे लाखों का फायदा हुआ, लेकिन मामला अब संदेह के घेरे में है.
उठ रहे अहम सवाल
1. अगर वैगन NC13023 नहीं पहुंचा था, तो उसका माल कहां से आया?
2. गोडाउन में दर्ज चावल की वास्तविकता क्या है – क्या समान दिखने वाला माल किसी और माध्यम से लाया गया?
3. मिसिंग वैगन की सूचना तुरंत रेलवे को क्यों नहीं दी गई?
4. क्या एफसीआई के स्थानीय और क्षेत्रीय अधिकारियों को इस हेरफेर की जानकारी थी?
5. क्या कोलकाता और दिल्ली के उच्चाधिकारियों को इस अनियमितता की जानकारी दी गई?
6. क्या यह पूरे घोटाले पर परदा डालने की कोशिश थी?
7. क्या इस मामले की जांच रिपोर्ट दिल्ली मुख्यालय तक भेजी गई?
8. क्या यह पूरा मामला सुनियोजित घोटाले का हिस्सा है?
रेलवे कर्मचारियों की भूमिका पर सवाल
धनबाद मंडल कार्यालय द्वारा तैनात एफसीआई प्रबंधक राहुल कुमार और अभिषेक कुमार के हस्ताक्षर पर 36 वैगन रिसीव किए गए थे. अब सवाल उठता है कि उन्होंने बिना वैगन के पहुंचे माल की एंट्री कैसे कर दी?
निष्कर्ष
एफसीआई साइडिंग में सामने आया यह मामला न केवल सिस्टम की चूक को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे बगैर किसी वैगन के पहुंचे माल को दस्तावेजों में दर्शाया गया और महीनों तक किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी. रीजनल कमिटी की रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि मामला केवल लापरवाही का नहीं, बल्कि एक गहरे और सुनियोजित घोटाले का हिस्सा हो सकता है. जांच की रिपोर्ट अब दिल्ली भेजी जा चुकी है. अब देखना है कि उच्च अधिकारी इस पर क्या कदम उठाते हैं. कार्रवाई होती है या मामला फाइलों में ही दबा दिया जाएगा.