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रांची/डेस्क: यूपी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उच्चस्तरीय समिति गठित करने का आदेश दिया गया है जो इस बात की जांच करेगी की क्या सट्टेबाजी और ऑनलाइन गेमिंग को नियमित करने की आवश्यकता है या नहीं? विनोद दिवाकर(जज) ने इस मुद्दे में कहा कि जुआ अधिनियम 1867 केवल ताश के पत्ते जैसे खेल के नियमन (रेगुलेशन) तक ही केवल समिति है और यह ब्रिटिश शासन के जमाने का कानूनी हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार के आर्थिक सलाहकार केवी राजू की अध्यक्षता में समिति का गठन किया जाना चाहिए जिसमें प्रमुख सचिव को सदस्य के रूप में शामिल करना चाहिए. इसके अलावा विशेषज्ञ भी इस समिति के सदस्य हो सकते हैं. अदालत में सार्वजनिक जुआ अधिनियम के तहत आरोपी इमरान खान और एक अन्य आरोपी की ओर से याचिका दायर की गई थी उस पर आदेश पारित किया गया हैं.
ब्रिटिश जमाने का कानून
इन आरोपियो को लेकर पुलिस का कहना है कि आरोपी घर से ऑनलाइन सट्टेबाजी का रैकेट चलते हुए करोड़ो रुपए की कमाई कर रहे थे. हाईकोर्ट ने सार्वजनिक जुआ अधिनियम के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ये कानून डिजिटल युग से पहले का कानून हैं. जिसमें सीमा पार लेनदेन या सर्वर और डिजिटल प्लेटफार्म का वर्णन नहीं किया गया है और इसका प्रवर्तन भौतिक जुआ घर तक सिमित है और वर्चुअल गेमिंग इस कानून के दायरे में नहीं आता हैं.
अदालत का आदेश
अदालत ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्म मनोवैज्ञानिक रूप से चालाकीपूर्ण रिवॉर्ड प्रणाली और अधिनियम का उपयोग करते हैं, जिससे लोगों में गेमिंग की लत लग जाती हैं. साथ ही अदालत ने कहा कि ऑनलाइन शर्त लगाने वाले कई गेम भारत से बहार परिचालित होते हैं और लेनदेन का पूरा प्रोसेस अन्य चैनलों के जरिए होता है, जिससे कानून को लागु करने की चुनौतियों को पैदा करता हैं. यही नहीं इस वजह से वित्तीय धोखाधड़ी का भी खतरा पैदा होता हैं.