नमो नारायण मिश्र/न्यूज़11 भारत
गोपालगंज/डेस्क: गोपालगंज में सदर अस्पताल में बिना सेफ्टी गियर के मजदूर काम करते हैं. . "यह है मॉडल सदर अस्पताल, गोपालगंज जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, जहां इलाज के साथ-साथ अब एक नया भवन भी निर्माणाधीन है. लेकिन इस निर्माण कार्य में जो लापरवाही दिख रही है, वह हैरान कर देने वाली है." वहां मौजूद थे दर्जनों मजदूर - लेकिन न तो किसी के सिर पर हेलमेट था, न पैरों में सेफ्टी शूज़, न हाथों में दस्ताने और न ही ऊंचाई पर काम करने के लिए कोई सेफ्टी बेल्ट." गोपालगंज के मॉडल सदर अस्पताल के निर्माणाधीन भवन के सामने खड़ा हूं. यहां नज़ारा साफ दिखाता है कि मजदूरों की सुरक्षा से ज्यादा ध्यान शायद समय सीमा और बजट पर दिया जा रहा है. "भारी भरकम मशीनें चल रही हैं, ऊंचाई पर दीवारें बनाई जा रही हैं, और उसी के बीच ये मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं.
बिना किसी सुरक्षा के। यह न केवल गम्भीर लापरवाही है, बल्कि भारतीय श्रम कानूनों का भी खुला उल्लंघन. "भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम, 1996 के तहत, हर निर्माण श्रमिक को सेफ्टी हेलमेट, बेल्ट, दस्ताने, जूते सहित सभी सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराना अनिवार्य हैं. साथ ही साइट पर प्राथमिक उपचार, शुद्ध पेयजल और आराम की जगह देना भी कानूनी रूप से आवश्यक है. अगर सरकारी अस्पताल के निर्माण में ही ऐसा हो रहा है, तो सोचिए निजी बिल्डिंगों में क्या हाल होगा? कल को कोई हादसा हुआ तो जिम्मेदार कौन होगा?" "सवाल सिर्फ ठेकेदार पर नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य विभाग और ज़िला प्रशासन पर भी उठते हैं. करोड़ों रुपये की लागत से बन रही इस इमारत पर निगरानी की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या अधिकारियों की नजर में यह सब कुछ नहीं आ रहा, या फिर अनदेखा किया जा रहा है?
स्थानीय लोगों का कहना है कि निर्माण स्थल पर कोई नियमित निरीक्षण नहीं होता. ना तो प्रशासन की ओर से और ना ही स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कोई जिम्मेदार अफसर समय पर पहुंचते हैं. ठेकेदार के लोग सिर्फ समय से कार्य पूरा करने और लागत बचाने में रुचि रखते हैं. सवाल यही है. क्या कोई बड़ा हादसा होने के बाद ही प्रशासन जागेगा? क्या मजदूरों की जान की कीमत सिर्फ रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों जितनी ही रह गई है? मॉडल सदर अस्पताल का यह मामला एक उदाहरण है, लेकिन यह सवाल पूरे सिस्टम से है. जब सरकारी योजनाओं में ही सुरक्षा का ऐसा हाल है, तो आम नागरिकों की ज़िन्दगी की कीमत कितनी सस्ती हो चुकी है? हम उम्मीद करते हैं कि प्रशासन इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेगा और तुरंत आवश्यक कार्रवाई करेगा. क्योंकि अगली बार शायद कोई रिपोर्टर वहां पहुंचने से पहले एक जान जा चुकी हो.