प्रशांत/ न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: करीब एक माह बीत चुका है, लेकिन चौपारण के लोगों की आंखें आज भी रोहित जैन की मुस्कुराती तस्वीर देख कर भर आती हैं. वह सिर्फ व्यवसायी नहीं थे, सैकड़ों लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी थे. कोरोना काल में भूखों को भोजन कराने वाला वही युवा, समाज की आवाज उठाने वाला वही बेटा आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसने सल्फास की पांच गोलियां खा लीं? पर्दे के पीछे की कहानी में बैंक का दबाव और टूटा मन सबसे बड़ा कारण था. परिजनों के अनुसार, रोहित ने अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए बैंक से बड़ा कर्ज लिया था. लेकिन कारोबार में उतार-चढ़ाव और लगातार आती किस्तों की तारीखों ने उन्हें बेचैन कर दिया. बैंक की तरफ से बार-बार चेतावनी, घर की नीलामी की तय तारीख, और समाज से भी कोई ठोस मदद न मिलने से उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे टूट गया. पत्नी अंशु जैन की आंखों से छलकते आंसुओं के बीच उनके शब्द तीर की तरह चुभते हैं. बताती है कि उन्हें बस थोड़ा समय चाहिए था, पचास लाख रुपये भी जमा कर दिए थे. पर बैंक की धमकियों से वे अंदर से टूट चुके थे. कुछ स्थानीय लोग भी परेशान कर रहे थे.
बेटा मैं जा रहा हूं - एक पिता के अंतिम शब्द
जिस वक्त उन्होंने जहर खाया, दस साल की बेटी पिहु ने रोते हुए पूछा- पापा क्या हुआ? रोहित जैन का जवाब था बेटा, मैं जा रहा हूं, तुम लोगों के लिए भी गोली रख दी है, मेरे साथ आ जाना. सोचिए, एक पिता कितना असहाय और हताश होगा जो अपनी बेटियों को भी अपने साथ मौत के सफर पर बुला रहा है. एक समय पूरे परगना में सोहन लाल जैन के घर को धनाढ्य सेठ का घर माना जाता था. पर आज घर की दीवारें गवाह हैं एक बिखरे परिवार की. तीन साल के भीतर पहले पिता का निधन, फिर छोटे भाई की मौत, और अब रोहित जैन की अचानक मौत. घर में अब कोई पुरुष सदस्य नहीं बचा. दो परिवारों की जिम्मेदारी रोहित के कंधों पर थी, भाई की दो बेटियां भी उन्हीं पर निर्भर थीं. आज रोहित की बूढ़ी मां, पत्नी अंशु और दो बेटियां पिहु और परी अकेले उस बोझ को ढो रही हैं, जिसे रोहित भी शायद संभाल नहीं पाए. रोहित की आत्महत्या ने कई सवाल खडा किये. यह अब भी जवाब मांग रहे हैं. क्या बैंक की नीतियां इतनी कठोर हो गई हैं कि एक ईमानदार व्यवसायी को मरने के लिए मजबूर कर दें? इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं, लेकिन ये सवाल हर दिल में घर कर गए हैं. रोहित का चेहरा काफी सामाजिक सहयोगी का था. उसने हजारों की मदद की, लेकिन अपने लिए कोई हाथ न उठा. आपदा मित्र सेवा फाउंडेशन के माध्यम से रोहित ने कोरोना काल में एक लाख से अधिक लोगों को भोजन कराया. आपदा मित्र एंबुलेंस से डेढ़ हजार से अधिक मरीजों की जान बचाई. लेकिन जब खुद रोहित संकट में थे, उनके लिए कोई सामने नहीं आया.
व्यवसायी वर्ग में डर का माहौल है. लोग सोचने को मजबुर हैं कि आज रोहित गया, कल कोई भी इसका शिकार हो सकता है. चौपारण के कई व्यापारी कहते हैं कि बैंकिंग सिस्टम की कठोरता से व्यापारी वर्ग डरा हुआ है. अगर कोई व्यक्ति पचास लाख रुपये जमा करने के बाद भी राहत नहीं पा सका, तो हममें से कोई भी असुरक्षित महसूस कर सकता है. घटना के लगभग एक माह बाद भी रोहित की बूढ़ी मां अब भी दरवाज़े की तरफ देखती रहती हैं, शायद बेटा वापस आ जाए. पत्नी अंशु की आंखों के आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे. बेटियां अब भी पूछती हैं मम्मी, पापा कब आएंगे? पत्नी अंशु जैन के अनुसार किसी तरह पहली किस्त पचास लाख रुपए बैंक में जमा किए थे. तुरंत एक सप्ताह में दुबारा पचास लाख देने की बात से पति विचलित हो गये. इसी के बाद पति परेशान हो गए.
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