अतीत की कहानी कहता बीरूगढ का सूर्य मंदिर, सातवीं शताब्दी से हो रहा सिमडेगा में सूर्य पूजन

अतीत की कहानी कहता बीरूगढ का सूर्य मंदिर, सातवीं शताब्दी से हो रहा सिमडेगा में सूर्य पूजन

अतीत की कहानी कहता बीरूगढ का सूर्य मंदिर सातवीं शताब्दी से हो रहा सिमडेगा में सूर्य पूजन

आशिष शास्त्री/न्यूज11  भारत

सिमडेगा/डेस्क:  कहते हैं इतिहास हीं इन्सान के जीवन का आईना होते हैं. इसी के सहारे इन्सान अपने अतीत से रूबरू होकर अपने वर्तमान की सच्चाई समझता है. इतिहास की गवाही हमें ऐतिहासिक धरोहरों से मिलती है. हमारे सिमडेगा में भी कई ऐतिहासिक धरोहर हैं जो आज भी अपने कालखंड की कहानियाँ सुनाते है. आज इस कडी में हम बात करेंगे बीरूगढ के सूर्य मंदिर की जो अपने में अतीत को समेटे आज भी अपनी दास्ताँ सुना रहा है.

जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर सिमडेगा रांची पथ पर एन एच 143 से महज 01 किलोमीटर अंदर पुराने तालाब के पास पुराने पत्थरों की से निर्मित मंदिरनुमा ढांचा और कुछ नहीं सूर्य मंदिर है. यहां स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा एक बड़े से पत्थर तराश कर बनायी हुई है. इस मंदिर को लेकर एक किंवदंती है कि यह मंदिर देव शिल्प विश्वकर्मा द्वारा एक रात में बनाया गया है. आप जब यहाँ मंदिर की बनावट को देखेंगे तो आप भी महसूस करेंगे कि ऐसी मंदिर का निर्माण को साधारण मनुष्य नहीं कर सकता है. एक दुसरे के उपर रखे पत्थरों की दिवार पर एक बड़े से पत्थर को रख कर धत बनाना किसी मानव के बस की बात नहीं लगती है. इसी प्राचीन मंदिर में एक हीं चट्टान को तराश कर बनाया गया सप्तअश्व रथ पर सारथी अरूण सहित सवार भगवान सूर्य और उनके अगल-बगल संध्या और छाया की प्रतिमा अपने आप में कला का अनूठा नमूना है.

कुछ वर्षों पहले तक यह मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में अतीत की कहानियों को समेटे गुमनामी का दंश झेल रहा था. वर्ष 2015 में समाजिक संगठन सार्वभौम शाकद्विपीय ब्राह्मण महासभा सिमडेगा के सदस्यों को इस मंदिर की जानकारी मिली. तब लोगों ने इस मंदिर को देखा जो काफी दयनीय स्थिति में था. इसके बाद महासभा के लोगों ने बीरू वासियों और बीरू राज परिवार के दुर्ग विजय सिंह देव के सहयोग  से इस स्थल को साफ करवाया और पुजा पाठ आरंभ किया गया. उस वक्त इस मंदिर में दरवाजा नहीं होने कारण जानवर इसके अंदर घुस जाया करते थे. तब वर्ष 2017 में ब्राह्मण महासभा द्वारा बिना ऐतिहासिक ढांचे से छेड़छाड़ किए इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर गेट लगाया गया.

इस मंदिर की आकृति और मंदिर का ढांचा बहुत हद तक झारखंड के प्रसिद्ध देवडी और हाराडीह मंदिर से मिलता जुलता है. देवडी और हाराडीह मंदिर सातवीं शताब्दी के आसपास की है. संभवतः ये सूर्य मंदिर भी उसी आसपास के काल-खंड का प्रतीत होता है. 

इस ऐतिहासिक धरोहर को जिले के अन्य पर्यटन स्थलों की सूची में जोड दिया जाए तो इसके भी स्वरूप में चार चांद लग जाएगें और आने वाले समय में यह बेहतर पर्यटन डेस्टीनेशन के रूप में अपने काल खंड से लोगों को अवगत कराएगा.

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