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झारखंड


झारखंड में अत्यधिक वर्षा की स्थिति को देखते हुए ICAR ने सुझाए आकस्मिक उपाय

झारखंड में अत्यधिक वर्षा की स्थिति को देखते हुए ICAR ने सुझाए आकस्मिक उपाय

न्यूज़11 भारत

रांची/डेस्क: ICAR-Central Research Institute for Dryland Agriculture ने झारखंड में अत्यधिक वर्षा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपनाए जाने वाले आकस्मिक उपाय बताए हैं. 
 
  • झारखंड का मध्य-उत्तर-पूर्वी पठारी क्षेत्र सबसे बड़ा है, जिसमें रांची से लेकर साहेबगंज, पाकुड तक के 14 जिले शामिल है, जबकि उप-क्षेत्र (पश्चिमी पठार) में पलामू, गढवा, लातेहार आदि के सात जिले शामिल हैं.
  • झारखंड का दक्षिण-पूर्वी पठारी क्षेत्र सबसे छोटा उप-क्षेत्र है, जिसमें केवल तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां शामिल हैं.
  • झारखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 79.71 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से केवल 28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है.
  • धान झारखंड की प्रमुख फसल है, जो सभी कृषि-परिस्थितिक स्थितियों में खरीफ के दौरान 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है, जो राज्य के कुल खेती योग्य क्षेत्र का 70% है.
  • राज्य में चार प्रकार की भू-आकृतियाँ हैं ऊंची भूमि (टांड), मध्यम ऊंची भूमि (दून III), मध्यम भूमि (दून ..) और नीचली भूमि (दून ...
  • ऊंची भूमि का क्षेत्र 10 लाख हेक्टेयर, मध्यम ऊंची भूमि का क्षेत्र 7 लाख हेक्टेयर, मध्यम भूमि का क्षेत्र 5 लाख हेक्टेयर और नीचली भूमि का क्षेत्र 6 लाख हेक्टेयर है.
  • 01 जून से 17 जुलाई 2025 तक की अत्यधिक वर्षा को ध्यान में रखते हुए, काले चने, सोयाबीन और मडुआ की मध्यम अवधि की किस्मों की बुवाई 7-10 अगस्त 2025 तक की जा सकती है, जिसके लिए रिज और फरो (नाली) की बुवाई विधि अपनाई जा सकती है.
  • ऊंची भूमि में आकस्मिक फसलें जैसे रामतिल/ काला तिल, कुल्थी, तोरिया और मटर को अगस्त और सितंबर 2025 के पूरे महीने में उगाया जा सकता है.
  • मध्यम अवधि (180-190 दिन) की अरहर की किस्मों की बुवाई 7 सितंबर 2025 तक की जा सकती है, जो रामतिल/ काला तिल, कुल्थी और तोरिया की तुलना में बेहतर लाभ देगी.
  • मध्यम ऊंची भूमि (दून ...) में जहाँ किसान आमतौर पर धान रोपाई करते हैं, वहाँ धान की रोपाई कम करना का सुझाव दिया जा सकता है. इसके स्थान पर अरहर, मक्का, ज्वार और बाजरा की बुवाई रिज और फरो की विधि से 7-10 अगस्त 2025 तक की जा सकती है.
  • मध्यम ऊंची भूमि (दून ...) जो अत्यधिक संवेदनशील है, वहाँ धान की रोपाई के स्थान पर डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) के तहत बुवाई की जा सकती है, जिसमें समुचित निराई-गुडाई की व्यवस्था हो.
  • जिन क्षेत्रों की मध्यम और नीची भूमि में रोपाई की जा चुकी है, पर यदि अत्यधिक वर्षा से नर्सरी नष्ट हो गई हो, तो मध्यम अवधि की धान की नर्सरी फिर से तैयार की जाए, जो 7-10 अगस्त 2025 तक रोपाई हेतु तैयार हो.
  • जून-जुलाई में अत्यधिक वर्षा से कुएँ, तालाब, नदियाँ और बांध जैसे जलस्रोत भर चुके हैं. इन्हें अगस्त-सितंबर 2025 के सूखे की स्थिति में सहायक/जीवनरक्षक सिंचाई के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
  • इस अत्यधिक वर्षा का उपयोग रबी की दालों और तिलहन जैसे चना, मसूर, मटर, सरसों और अलसी की बुवाई हेतु भी किया जा सकता है.
इन आकस्मिक उपायों को कृषि विभाग, आत्मा (ATMA), केवीके (KVK) आदि के अधिकारियों में व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि सभी फसलों का अधिकतम क्षेत्र में बेहतर उत्पादन हो सके.
 
 

 

 

 

 

 

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