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रांची/डेस्क: पशुपालन विभाग द्वारा शुरू की गई पशु एंबुलेंस सेवा कभी भी ठप हो सकती है. 10 महीने पहले पशुपालन विभाग द्वारा 236 पशु एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की गई थी. EMRI एजेंसी को निविदा के आधार पर इस सेवा के लिए चुना गया था. कंपनी ने तमाम 236 पशु एंबुलेंस में ड्राइवर, कंपाउंडर और पशु चिकित्सक रखने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था.
मगर कंपनी को पिछले 10 महीने से ₹1 का भी भुगतान नहीं किया गया है. हर महीने लगभग ₹1.60 करोड़ भुगतान का कॉन्ट्रैक्ट है. कंपनी को भुगतान क्यों नहीं हुआ, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. कंपनी हटिया पशुपालन भवन में एक 24/7 कॉल सेंटर का भी संचालन कर रही है. लगभग 300 कर्मचारियों का वेतन पिछले 10 महीने से EMRI कंपनी किसी तरह खुद से भुगतान कर रही है, मगर अब हालात काबू से बाहर हो चले हैं. किसी भी दिन यह कंपनी सेवा बंद कर सकती है.
हमने जब इस मामले की पड़ताल अधिकारियों से की, तो किसी ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया. कृषि एवं पशुपालन सचिव अबू बकर सिद्दीक ने बताया कि कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक 236 एंबुलेंस में 236 पशु चिकित्सक भी देने थे, लेकिन कंपनी ने इस शर्त को पूरा नहीं किया. उनके मुताबिक कंपनी को झारखंड में पशु चिकित्सक ही नहीं मिल रहे हैं. बाहर से पशु चिकित्सक लाने के लिए कंपनी को पैसे चाहिए और वो पैसे सरकार के पास पड़े हैं. बकाया भुगतान हो तो कंपनी दूसरे राज्यों से पशु चिकित्सकों को रांची बुला सकती है.
पशुपालन विभाग ने कंपनी को शो-कॉज भी किया है और एक कमेटी भी बनाई गई है, जो चिकित्सक नहीं मिलने की समस्या के समाधान के रास्ते तलाश रही है. सेवा में शिकायतें भी मिली हैं, जिसको देखते हुए कृषि पशुपालन मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने एजेंसी को तलब कर फटकार भी लगाई.
मामला पेचीदा हो गया है. अब जब कंपनी शो-कॉज का जवाब देगी और कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी, तब तक पशुपालन विभाग शर्तों का उल्लंघन करने के जुर्माने के तौर पर बाकी भुगतान में से राशि काटकर कंपनी को भुगतान की प्रक्रिया शुरू कर चुका है. अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि आने वाले एक सप्ताह में भुगतान हो सकता है.
यही EMRI कंपनी झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग के 108 एंबुलेंस सेवा का संचालन भी कर रही थी. वहां भी प्रतिमाह ₹4 करोड़ का भुगतान तय हुआ था, मगर वहां भी लंबे समय तक भुगतान नहीं किया गया, जिसकी वजह से कंपनी की सेवा पर असर पड़ा और अंत में स्वास्थ्य विभाग ने टेंडर कर दूसरी एजेंसी हायर कर ली.
हाल ही में नई कंपनी के ड्राइवर और अन्य कर्मचारियों ने जबरदस्त हड़ताल की, जिसका असर एंबुलेंस सेवा पर पड़ा. अंत में स्वास्थ्य सचिव के साथ समझौता हुआ और उनकी लंबित बकाया राशि तथा अन्य मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया गया.
सवाल यह है कि अगर कंपनी ने शुरू में ही अपनी शर्तें पूरी नहीं की थीं, तो इस सेवा का उद्घाटन ही नहीं करना चाहिए था. झारखंड का यह रिवाज बन गया है कि बिना सोचे-समझे, कच्चे-पक्के तौर पर सेवाओं का उद्घाटन कर दिया जाता है. जब बकाया बढ़ जाता है, तो चीजें काबू से बाहर होने लगती हैं.
इसलिए, बाहर से झारखंड जाकर टेंडर लेने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां अब झारखंड की लालफीताशाही और भुगतान में देरी से तंग आ चुकी हैं. अचरज नहीं कि पशु एंबुलेंस सेवा झारखंड में ज्यादा दिन तक न चल सके.