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रांची/डेस्क: रांची से लौटते वक्त झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी के काफिले को अचानक रोकना पड़ा. जगह थी – गोविंदपुर, और दृश्य बेहद विचलित करने वाला था. सड़क के किनारे एक लहूलुहान बूढ़े व्यक्ति, दर्द से कराहते हुए पड़े थे — नाम था सुलेमान अंसारी. लोग आते-जाते रहे, गाड़ियां रफ्तार से निकलती रहीं, लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा कि रुककर देखें कि ये बुज़ुर्ग ठीक हैं भी या नहीं. कोई मदद करने को तैयार नहीं था. लेकिन मंत्री डॉ. इरफान अंसारी की नज़र जैसे ही उन पर पड़ी, उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपना काफिला रुकवाया.वे खुद गाड़ी से उतरे, सुलेमान अंसारी को अपने हाथों से उठाया, और तुरंत प्राथमिक उपचार करवाया. इसके बाद उन्होंने उन्हें अपने ही काफिले की गाड़ी में बैठाकर धनबाद सदर अस्पताल भेजा. सिविल सर्जन से फ़ोन पर बात कर बेहतर से बेहतर इलाज सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया.
इतना ही नहीं, मंत्री जी ने आर्थिक मदद भी दी और परिवार को आश्वासन दिया कि इलाज, सहयोग और जरूरत की हर मदद उन्हें दी जाएगी. वहीं, मौके पर मौजूद सुलेमान अंसारी की नातिन, जो सदमे में थी, ने रोते हुए मंत्री जी के पैरों को छूने की कोशिश की और कहा की अगर आप नहीं होते, तो आज मेरे दादा इस दुनिया में नहीं होते... आपने हमें हमारे भगवान को लौटा दिया. आज मैंने एक नेता नहीं, एक फरिश्ते को सामने से देखा है. हमारी दुआएं हमेशा आपके साथ हैं."
इस घटना ने एक बार फिर साबित किया कि नेतृत्व का असली अर्थ केवल योजनाएं और घोषणाएं नहीं, बल्कि इंसानियत के लिए खड़ा होना होता है. डॉ. इरफान अंसारी ने आज एक बार फिर दिखा दिया कि जब बाकी आंखें मूंद लेती हैं, तब भी मानवता के प्रहरी जागते रहते हैं. इस एक घटना ने हजारों दिलों को छू लिया — और सुलेमान अंसारी की धड़कनों के साथ आज हर झारखंडवासी की संवेदनाएं भी धड़क उठीं.